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इतिहास

मेवाड़ के सुप्रसिद्ध कृष्ण धाम श्री साँवलियाजी का मंदिर राजस्थान प्रान्त के भक्ति, शक्ति, पराक्रम और बलिदान के लिये जगत विख्यात ऐतिहासिक जिला चितौड़गढ की पंचायत समिति भदेसर के मण्डफिया ग्राम में स्थित है । यहां वर्ष पर्यन्त देश के विभिन्न भागों से श्रद्वालुओं का दर्शनार्थ आवागमन सदैव बना रहता है ।

भगवान श्री साँवलियाजी की इस चमत्कारी मूर्ति का ऐतिहासिक तथ्यों, जन श्रुतियों एवं किंवदंतियों के अनुसार मेवाड के अधिपति राणा संग्रामसिंह की बाबर के साथ चली लम्बी जंग के पश्चात् विक्रम संवत् 1584 में सात - मृत्यु हो गई । मीराबाई के सांसारिक पति भोजराज भी शादी के बाद आठ वर्ष ही जीवित रहे । माता पिता का भी देहवसान हो गया और मीराबाई एकाकी रह गई । उस समय साधु महात्माओं की एक जमात का देश के विभिन्न भागों में भ्रमण करते हुए मेवाड क्षैत्र में आगमन हुआ । इन साधु महात्माओं की जमात के पास गिरधर गोपाल श्री सॉवलियाजी की चार मूर्तियाँ थी । जमात द्वारा प्रतिदिन इन मूर्तियों की सम्पूर्ण धार्मिक विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती थी व भजन कीर्तन हुआ करते थे । जिसमें भक्तगण भी बडी संख्या में भाग लिया करते थें । -

इस जमात का श्री सांवलिया जी की चारों मूर्तियों के साथ चितौड़ के समीप बेड़च नदी के किनारे पर रमणीक हरिच्छादित स्थान पर आगमन और पड़ाव डालने पर आसपास के असंख्य श्रद्वालुओं का दर्शनार्थ तांता लग गया और भजन-कीर्तनों से वे आनन्दित होने लगे । संयोग से भक्तिमती मीरा को भी इस जमात के साथ सत्संग का अवसर मिल गया । जमात में श्री सांवलिया जी की चार मूर्तियों में से एक छोटी मूर्ति ने मीरा का मन मोह लिया । वह इस मनोहारी सांवलिया जी की मूर्ति को अपलक निहारती रहती अपनी वीणा बजाती, नाचती गाती भजन कीर्तन करती रहती और "संतन ढिंग बैठि बैठि लोक लाज खोई " लम्बे समय तक इस जमात के साथ रहने के पश्चात मीरा पुनः अपने पियर मेड़ता लौट गई तथा वह आगे चलकर वह वृन्दावन चली गई जबकि दूसरे मत के अनुसार वह द्वारिका (गुजरात ) चली गई जहाँ भक्ति रस की धारा प्रवाहित करती हुई प्रभु श्री द्वारकाधीश में विलीन हो गई ।

इधर संत महात्माओं की वह जमात मीरा का मन मोह लेने वाली सॉवरिया जी की छोटी मूर्ति सहित चारों मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रही । ये चारों मूर्तियां दयाराम नामक संत की जमात के पास थी । समय बीता, माह और वर्ष बीते और आगे चलकर । जब बादशाह औरंगजेब को भी इन मूर्तियों के बारे में जानकारी मिली तो उसकी फौज हिन्दु मंदिरों को नष्ट करती मूर्तियों को तोड़ती व खण्डित करती हुई चितौड़गढ तक आ गई । अपने आराध्य इन चारों मूर्तियों की रक्षार्थ आगे-आगे संत दयाराम की जमात और उनके पीछे पिछा करती हुई औरंगजेब की मुगल फौज को सन्निकट आता देख कर प्रभु प्रेरणा से दयाराम की जमात ने भादसोड़ा के निकट बागुण्ड़ गॉव के समीप एक वट वृक्ष के नीचे दस पन्द्रह फीट गहरा खड्डा खोद कर चारों मूर्तियो को उसमें पधरा दिया और मिट्टी से आपूरित कर उस स्थान पर संतजन धूनी जमा कर भजन-कीर्तन करने में लग गये । मुगल सेना आई किन्तु मूर्तियों का पता नहीं चल पाया और वह आगे बढ़ गई । मूर्तियों को सुरक्षित मान जमात वहीं पडाव डाले रही, भजन-कीर्तन चलते रहे । आगे चलकर जमात के प्रधान महन्त का देहावसान हो गया । कालान्तर में अन्य संत जन भी एक-एक कर वहां से चले गये किन्तु चारों मूर्तियां वटवृक्ष के नीचे जमीन में सुरक्षित रही ।

जनश्रुतियों एवं किंवदंतियों के अनुसार मण्डफिया ग्राम के वासी भोलीराम गुर्जर नाम के एक ग्वाले को लगभग 250 वर्ष पूर्व स्वप्न आया कि बागुण्ड़ गांव के छापर में स्थित वटवृक्ष के नीचे चार मूर्तियाँ जमीन में दबी हुई है । प्रभु प्रेरणा से स्वप्नानुसार उक्त भोलीराम गुर्जर ने गॉव में जाकर मण्डफिया वासियों को बताया व गॉव मण्डफिया के निवासियों का एक झुण्ड बागुण्ड ग्रामवासियों से जाकर मिला । भोलीराम गुर्जर को आये स्वप्न के बारे में बताया तो एकाएक किसी को विश्वास नहीं हुआ फिर भी दोनों गाँव के लोगों ने भोलीराम गुर्जर द्वारा बताये स्थान पर पहुँचें तत् समय गॉव भादसोडा के वासियों को भी सूचना मिली, ग्राम भादसोडा के मौतबीर लोग भी उक्त स्थान पर अनेक विकास पहुँचे । तीनों गाँव के लोगों की सहायता से उक्त स्थान की खुदाई की और जमीन के 10-15 फीट नीचे चार मूर्तिया निकली तो उपस्थित जन समूह आश्चर्य चकित रह गयें । स्वप्न साकार हो उठा । उपस्थित जन समूह आन्नद विभोर हो उठा । उपस्थित जन समूह ने श्री सांवलियाजी की जय-जयकार करने लगे । इन चार मूर्तियों में से एक मूर्ति गड्डा खोदते समय खण्ड़ित हो गई जिसे उसी गड्डे में पधरा दी गई । जबकि शेष तीनों मूर्तियों को उस प्राकट्य स्थल से बाहर निकाला गया । परस्पर विचार-विमर्श कर इन तीन मूर्तियों में से एक मूर्ति प्राकट्य स्थल बागुण्ड एवं दूसरी मूर्ति ग्राम भादसोड़ा में और तीसरी मनोहारी मूर्ति को ग्राम मण्डफिया के वासी बड़ी धूम - धाम के साथ एवं श्रीसाँवलिया सेठ की जय जयकार करते हुए मण्डफिया लेकर आये । भक्त भोलीराम गुर्जर के घर में स्थित परेण्डे में अस्थायी तौर पर श्री साँवलियाजी की मूर्ति रखवा दी गई | ग्राम मण्डफिया में भक्त भोलीराम के घर में अस्थायी तौर पर रखी श्री सांवलियाजी की वही मूर्ति है जिसने भक्तिमति मीरा का मन मोह लिया और जिसे अपलक निहारती भावविभोर होकर नाचती - गाती, भजन-कीर्तन किया करती थी । विक्रम संवत् की सोलहवी शताब्दी के उत्तरार्ध में भक्तिमति मीरा को मोहित कर लेने वाली इस सांवलियाजी की मूर्ति के चमत्कारों की गाथा धीरे-धीरे मण्डफिया क्षेत्र की सीमा पार कर दूर-दूर तक फैलने लगी और श्रद्वालुओं का दर्शनार्थ आवगमन उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया ।

जन-जन में इसे एक चमत्कारी मूर्ति के रूप में स्वीकारा जाने लगा । दिन-ब-दिन प्रभु श्री सॉवलियाजी के दर्शनार्थ श्रद्वालुओं का आवागमन उत्तरोत्तर बढ़ जाने से ग्राम मण्डफिया एवं आस-पास के सोलह गांवो के प्रमुख श्रद्वालु व्यक्तियों से विचार -विमर्श कर इस चमत्कारिक मूर्ति को भक्त भोलीराम गुर्जर के परेण्डे से हटाकर सम्पूर्ण धार्मिक विधि विधान पूजा-पाठ कराकर भक्त भोलीराम के मकान के पास एक कुई के समीप कच्चा मंदिर बनाकर शुभ मूहुर्त में स्थापित की गयी।

प्रबन्ध कारिणी कमेंटी का गठन

मंदिर की आय और कार्य विस्तार को देखते हुए सन् 1956 में श्री साँवलियाजी मंदिर प्रबन्धकारिणी कमेंटी का पंजीकरण करवाया गया । गाम मण्डफिया सहित समीपस्थ 16 गावों के 65 सदस्यों का एक ट्रस्ट गठित किया गया । ट्रस्ट गठन के साथ ही मंदिर की आय में भारी वृद्धि होने लगी । श्रृद्वालुओं का आवागमन बढ़ जाने से 1961-62 में कच्चे केलूपोस मंदिर के बजाय विशाल पक्के मंदिर का निर्माण करवाया गया । इस विशाल पक्के मंदिर में सन् 1980-84 में कांच का चित्त आकर्षक एवं नयानाभिराम अति सुन्दर कार्य करवाया गया । सन् 1956 से 2 दिसम्बर 1991 तक प्रबन्धकारिणी कमेंटी द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जाती रही एवम् अनेक विकास कार्य किये गये ।

राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहण एवं बोर्ड का गठन

श्री साँवलियाजी मंदिर मण्डल की आय एवं श्रद्वालुओं का दर्शनार्थ आवागमन एवं कार्य विस्तार की गति अत्यधिक बढ़ जाने के साथ ही ऐसी स्थितियाँ बन गई जिसके कारण 3 दिसम्बर 1991 में राजस्थान सरकार द्वारा श्री साँवलियाजी मंदिर का अधिग्रहण कर श्रीसॉवलियाजी मंदिर मण्डल मण्डफिया के नाम से बोर्ड का गठन किया गया ।

भव्य मंदिर निर्माण

श्री साँवलियाजी के दर्शनार्थ श्रद्वालुओं का आवागमन उत्तरोत्तर बढ़ने से मुख्य मंदिर ओर आसपास का परिसर बहुत संकड़ा प्रतीत होने एवं दर्शनार्थियों की सुविधा - सुव्यवस्था को देखते हुए सन् 1996 में तत्कालीन मंदिर मण्डल प्रबन्धन ने नगर नियोजन विभाग, उदयपुर के सहयोग से मंदिर विस्तार एवं परिसर विकास योजना की रूपरेखा तैयार की गई एवं भूमि अवाप्ति की कार्यवाही कर प्रभावित लोगों का पुनर्वास कर तीन करोड़ चौतीस लाख रूपया का मुआवजा दिया गया। भूमि अवाप्ति के बाद सन् 2000 से गुजरात के अक्षर धाम की तर्ज पर नवीन भव्य मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है, जिस पर लगभग 50 करोड़ रूपया व्यय होना प्रस्तावित है ।

मंदिर के प्रमुख धार्मिक उत्सव

श्री साँवलियाजी में वर्ष पर्यन्त विभिन्न परम्परागत धार्मिक उत्सवों के आयोजन होते रहते है । प्रमुख रूप से जन्माष्टमी, जल- झूलनी एकादशी के अवसर पर तीन दिवसीय विशाल मेला, दीपावली व अन्नकूट देवउठनी एकादशी निर्जला एकादशी देवशयनी एकादशी होली, शरद पूर्णिमा बसन्त पंचमी महाशिवरात्री आदि पर्व पूर्ण उत्साह एवं उमंग के साथ भव्य रूप में आयोजित है । प्रतिमाह कृष्ण पक्ष की चतुर्थदशी को श्रीसांवलिया सेठ का भण्डार ( दानपात्र ) खोला जाता है और प्रतिमाह अमावस्या को महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है ।

जनहितकारी कार्य

श्री सॉवलियाजी के भण्डार से प्राप्त आय की राशि न केवल मंदिर निर्माण एवं धार्मिक कार्यो पर व्यय की जाती है अपितु जनहितकारी कार्यो पर इस आय का बड़ा भाग खर्च किया जाता है यथा – सोलह सम्बद्ध गॉवों के मंदिरों, सम्पर्क सड़को पेयजल, रोशनी विद्यालय भवन निर्माण .. धार्मिक पर्वो के आयोजन आदि पर व्यय होता है । विशाल निःशुल्क शल्य चिकित्सा शिविर निःशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर के आयोजन, गरीब व पिछड़े वर्गों के गभ्भीर रोग ग्रस्त लोगों को आर्थिक सहायता दी जाती है । विशाल गौसेवा सदन के संचालन पर विपुल राशि खर्च की जाती है । मण्डफिया (श्री साँवलियाजी ) ग्राम में विशाल सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र भवन महाविद्यालय भवन, उच्च प्राथमिक विद्यालय भवन, कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय भवन, उच्च प्राथमिक विधालय , विशाल श्री साँवलियाजी बस स्टेण्ड प्रथम श्रेणी पशु चिकित्सालय भवन आदि भवनों का निर्माण करवाया गया है इसके अतिरिक्त पुनित कार्यों की श्रेणी में जिला मुख्यालय चितौड़गढ पर राजकीय सार्वजनिक चिकित्सालय निर्माण कार्य में 2.5 करोड़ रूपये का अनुदान एवं राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय हेतु 85 लाख रूपये का अनुदान दिया जाकर भवन निर्माण कार्य में सहयोग प्रदान किया गया एवं प्रतिवर्ष मुख्य मंत्री सहायता कोष में हार्ट वाल्व के गरीब व असहाय तबके के लोगों के ईलाज हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है ।

प्रभु श्री साँवलिया सेठ के चमत्कारों के बारे में अनेकानेक किंवदंतियाँ है एवं कई लोग तो अनेकानेक चमत्कारों के प्रत्यक्षदर्शी आज भी मौजूद है ।

घी की कुई

प्रभु श्री साँवलिया के गर्भगृह के समीप दाहिनी ओर दक्षिण दिशा में एक कुई आज भी अवस्थित है जिसे "घी" की कुई के नाम से जाना जाता है । गाँव के कई वरिष्ठजन एवं अनेक प्रबुद्ध नागरिकों ने अपने संस्मण सुनाते रहते है कि एक बार अन्नकूट के दिन मालपूए बनाने के लिये अन्य सभी आवश्यक सामग्री पर्याप्त मात्रा में थी किन्तु श्रद्वालु यात्रियों के अत्यधिक संख्या में आ जाने से घी कम पड गया । भक्त भोलीराम के प्रयास करने पर भी आसपास घी उपलब्ध न हो पाया, यातायात के साधनों की कमी से तुरन्त बाहर से घी मंगवाना भी संभव नहीं था । किंकर्तव्य विमूढ़ भोलाराम प्रभु श्री साँवलिया सेठ के द्वार पर पहुँचे । इससे पूर्व कि वे श्री साँवलिया सेठ से पुकार करते कि द्वार पर खड़े एक अत्यन्त वृद्ध भद्र पुरूष ने भोलाराम से पूछ ही लिया कि इतने परेशान और घबरा क्यों रहे हो ? भोला राम ने अपनी परेशानी का कारण स्पष्ट किया । इस पर वृद्ध पुरूष ने प्रेरणा दी कि पास वाली कुई से आवश्यकतानुसार पानी निकाल लो और बाद में व्यवस्था हो जाने पर वापिस इसी कुई में उतना ही घी अवश्य डाल देना । भोलाराम ने ऐसा ही किया । कुई का पानी कड़ाहे में पड़ते ही घी बन गया और आवश्यकतानुसार मालपुए बनाए गये । सानन्द अन्नूकूट का आयोजन सम्पन्न हो गया उपस्थित सभी प्रेरणा देने वाले उस वृद्ध पुरुष को ढूंढ़ने लगे किन्तु वह कहीं नहीं मिला । मिलता भी कैसे यह तो प्रभु श्री साँवलिया सेठ का ही माया चमत्कार था कि वृद्ध पुरूष के वेश में भोलाराम की समस्या का समाधान सुना कर चमत्कारी मूर्ति में समावेश हो गये । इस चमत्कार से भी अधिक चमत्कार उस समय दृष्टिगत हुआ जब भोला राम . ने घी की व्यवस्था हो जाने पर वृद्ध पुरूष के बताये अनुसार पुनः उतना ही घी कुई में डाला की साक्षी में उपस्थित लोग आश्चर्य चकित हो गए । कुई में डाला गया घी पानी के ऊपर तिरने के बजाय पानी में मिल गया । प्रभु श्री साँवलिया सेठ के चमत्कारों में से एक चमत्कार इस कुई को नव भव्य मंदिर निमार्ण योजनाओं में भी संरक्षित कर सुरक्षित रखा गया है ।

अद्भुद चमत्कार

वर्ष 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय भैरो सिंह शेखावत का मंदिर श्रीसॉवलियाजी के शिखर पर ध्वजादण्ड आरोहण में भाग लेने मण्डफिया पदार्पण हुआ । प्रभु श्री साँवलियाजी सेठ के दर्शन दोपहर 12 बजे से 2.30 बजे तक बन्द रहते है । मुख्यमंत्री जी ने दर्शन करने की इच्छा जाहिर की उस समय अपरान्ह 2 बज रहे थे । आनन फानन में पूजारी को बुलाया गया । मंदिर के कपाट पर ताला खोलने का प्रयास किया गया । लाख प्रयत्न करने पर भी गर्भगृह के द्वार पर लगा ताला नहीं खुल पाया किन्तु जैसे ही 2.30 बजे कि ताला उसी चाबी से खुल गया उपस्थित दर्शनार्थी इस चमत्कार को देख कर जय-जयकार करने लगें । माननीय शेखावत साहब भी इस मर्यादापूर्ण चमत्कार से अभिभूत हो गये प्रभु श्री साँवलिया सेठ के दर्शनोंपरान्त ही उन्होंने आगे की यात्रा के लिये प्रस्थान किया ।

दानपेटी (भण्डार) का चमत्कार

प्रभू श्री साँवलिया सेठ के गर्भगृह के द्वार के समीप एक भण्डार ( दानपेटी) रखी हुई है । जिसके पास खड़े रह कर प्रभु के दर्शन करते है और अपनी मनोकामना स्वरूप भेंट भण्डार(दानपेटी) में श्रद्धानुसार राशि / गहने डालते है । हर कृष्ण पक्ष की चतुर्थदशी को हजारों श्रद्धालु एवं दर्शनार्थियों मंदिर मण्डल अधिकारियों / कर्मचारियों, बैंक कर्मीयों की उपस्थिति में राजभोग आरती के बाद भण्डार ( दानपेटी) खोला जाता है । मंदिर के मध्य मण्डप में भण्डार (दानपेटी) से निकली हुई राशि ढेर लगा कर छटनी कर गिनती की जाती है । जबसे प्रभु श्री साँवलिया सेठ के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ है तब से भण्डार ( दानपेटी) से निकलने वाली राशि में उतरोत्तर वृद्धि होकर एक माह में राशि एक करोड़ रूपये से अधिक निकलती है । इस वृद्धि को देखते हुए लगभग पाँच करोड़ की राशि संग्रहण की क्षमता का एक 125 किलोग्राम चाँदी का भव्य एवं कलात्मक भण्डार ( दानपेटी ) प्रभु श्री साँवलिया सेठ के द्वार के समीप स्थापित की जा चुकी है। श्री साँवलिया सेठ के भण्डार ( दानपेटी) में उतरोत्तर विपुल राशि की अभिवृद्धि इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्रभु श्री साँवलिया सेठ अपने भक्तों की मनोतियाँ / मनोकामनाएँ पूर्ण करते है और अपने चमत्कारों से भक्तों के श्रद्धाभाव का पोषण करते हैं ।